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समाज

December 22, 2013

क्रिसमस की हार्दिक बधाइयाँ

मेरा Exam आज से शुरू हो रहा है इसलिए ये पोस्ट मैं वक़्त से पहले दे रहा हूँ....



क्रिसमस या बड़ा दिन ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में मनाया जाने वाला पर्व है। यह 25 दिसम्बर को पड़ता है और इस दिन लगभग संपूर्ण विश्व मे अवकाश रहता है।  25 दिसंबर यीशु मसीह के जन्म की कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नहीं है। क्रिसमस की छुट्टियों मे एक दूसरे को उपहार देना, चर्च मे समारोह, और विभिन्न सजावट करना शामिल है।यह अज्ञात है कि ठीक कब या क्यों दिसम्बर 25 मसीह के जन्म के साथ जुड़ गया.नया साक्ष्य भी निश्चित तिथि नहीं देता है। पुराने ईसाई भी मानते हैं की इस तारीख को मसीह को क्रूस पर चढ़ाया गया था.ईसाई विचार है कि मसीह की जिस साल क्रूस पर मृत्यु हो गई थी उसी तिथि पर वो फ़िर से गर्भित हुए थे जो एक यहूदी विश्वास के साथ अनुरूप है कि एक नबी कई साल का जीवित रहे थे.क्रिसमस के बारह दिन (Twelve Days of Christmas) क्रिसमस दिवस, 26 दिसंबर, के बाद के दिन जो की सेंट स्टीफन दिन (St. Stephen's Day) है से दावत की घोषणा (Feast of Epiphany) जो की जनवरी को है, से बारह दिन हैं, जिसमे कि प्रमुख दावतें आती हैं मसीह के जन्म के आसपास.लातिनी संस्कार में, क्रिसमस के दिन के एक हफ्ते के बाद 1 जनवरीमसीह के नामकरण और सुन्नत की दावत (Feast of the Naming and Circumcision of Christ) समारोह को पारंपरिक रूप से मनाया जाता है, लेकिन वेटिकन II (Vatican II) से, इस दावत को मेरी, परमेश्वर की माँ (Mary, Mother of God) की धार्मिक क्रिया के रूप में मनाया गया है .

                       कुछ परंपराओं में क्रिसमस के शुरू के 12 दिन क्रिसमस के दिन (25 दिसम्बर) से शुरू होते हैं और इसलिए 12वां दिन 5 जनवरी है.


December 12, 2013

जन्मदिन मुबारक

 आज के दिन इस नन्ही सी गुड़िया का जन्म हुआ था। ये मेरी सबसे प्यारी बेटी है । 


November 14, 2013

बाल दिवस

14 नवंबर को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन होता है। इसे बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि उन्हें बच्चों से बहुत प्यार था और बच्चे उन्हें चाचा नेहरू पुकारते थे।
          बाल दिवस बच्चों को समर्पित भारत का राष्ट्रीय त्योहार है। देश की आजादी में भी नेहरू का बड़ा योगदान था। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने देश का उचित मार्गदर्शन किया था। बाल दिवस बच्चों के लिए महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन स्कूली बच्चे बहुत खुश दिखाई देते हैं। वे सज-धज कर विद्यालय जाते हैं। विद्यालयों में बच्चे विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं।








November 3, 2013

शुभ दीपावली

समाज के सम्मानित पाठकों को मेरी तरफ से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.........

Deepavali Orkut Scraps, Comments and Greetings

Deepavali Orkut Scraps, Comments and Greetings

Deepavali Orkut Scraps, Comments and Greetings

Deepavali Orkut Scraps and Wishes


Happy Diwali Glowing Lamps Picture

May this Festival of Lights be a Festival of Joy for You Happy Deepawali

October 2, 2013

फ्रेसर पार्टी

कल मेरे कॉलेज में फ्रेसर पार्टी हुई जिसका मै फोटोग्राफ्स आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ ।






September 3, 2013

उपासना में वासना


इस पोस्ट की मूलपोस्ट  यहाँ है।

1-



उपासना में वासनामुख में है हरिनाम।
सत्संगों की आड़ मेंकरते गन्दे काम।।
जनता के धन-माल परऐश करे परिवार।
बाबाओं के पास मेंदौलत का अम्बार।।
कुटिया में एकान्त मेंसिखलाते हैं योग।
राम नाम के नाम परफैलाते हैं भोग।।
ललनाओँ को जाल मेंसन्त फँसाता रोज।
ऐसा कामी-अधम तोधरती पर है बोझ।।
हत्या और बलात् केकिये आपने काम।
गुरूकुलों के नाम कोकर डाला बदनाम।।
अपने ओछे कर्म सेकिया कलंकित नाम।
शर्म-लाज आयी नहींआशाओँ के राम।।

2- 
इस पोस्ट की मूलपोस्ट यहाँ है।


धार लबादा सन्त काकरते पापाचार।
कश्ती को अब धर्म कीकौन करेगा पार।।
पहले भी थे धरा परथोड़े-बहुत असन्त।
अब बहुतायत में हुएभोगी और कुसन्त।।
कामी. क्रोधी-लालचीकरते कारोबार।
राम नाम की आड़ मेंदौलत का व्यापार।।
उपवन के माली स्वयंकली मसलते आज।
आशाएँ धूमिल हुईंकुंठित हुआ समाज।।
आशाओं का हनन जबकरते आशाराम।
आशा के संचार काकौन करेगा काम।।

 ये पोस्ट रूपचंद्रशास्त्री जी के द्वारा लिखित है।

September 2, 2013

समाज की बलि चढ़ती बेटियां













'साहब ! मैं तो अपनी बेटी को घर ले आता लेकिन यही सोचकर नहीं लाया कि समाज में मेरी हंसी उड़ेगी और उसका ही यह परिणाम हुआ कि आज मुझे बेटी की लाश को ले जाना पड़ रहा है .'' केवल राकेश ही नहीं बल्कि अधिकांश वे मामले दहेज़ हत्या के हैं उनमे यही स्थिति है दहेज़ के दानव पहले लड़की को प्रताड़ित करते हैं उसे अपने मायके से कुछ लाने को विवश करते हैं और ऐसे मे बहुत सी बार जब नाकामी की स्थिति आती है तब या तो लड़की की हत्या कर दी जाती है या वह स्वयं अपने को ससुराल व् मायके दोनों तरफ से बेसहारा समझ आत्महत्या कर लेती है.

सवाल ये है कि ऐसी स्थिति का सबसे बड़ा दोषी किसे ठहराया जाये ? ससुराल वालों को या मायके वालों को ? जहाँ एक तरफ मायके वालों को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा की चिंता होती है वहां ससुराल वालों को ऐसी चिंता क्यूं नहीं होती ?

इस पर यदि हम साफ तौर पर ध्यान दें तो यहाँ ऐसी स्थिति का एक मात्र दोषी हमारा समाज है जो ''जिसकी लाठी उसकी भैंस '' का ही अनुसरण करता है और चूंकि लड़की वाले की स्थिति कमजोर मानी जाती है तो उसे ही दोषी ठहराने से बाज नहीं आता और दहेज़ हत्या करने के बाद भी उन्ही दोषियों की चौखट पर किसी और लड़की का रिश्ता लेकर पहुँच जाता है क्योंकि लड़कियां तो ''सीधी गाय'' हैं चाहे जिस खूंटे से बांध दो .

मुहं सीकर ,खून के आंसू पीकर ससुराल वालों की इच्छा पूरी करती रहें तो ठीक ,यदि अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठा दें तो यह समाज ही उसे कुलता करार देने से बाज नहीं आता .पति यदि अपनी पत्नी से दोस्तों को शराब देने को कहे और वह दे दे तो घर में रह ले और नहीं दे तो घर से बाहर खड़ी करने में देर नहीं लगाता  .पति की माँ बहनों से सामंजस्य बैठाने की जिम्मेदारी पत्नी की ,बैठाले तो ठीक चैन की वंशी बजा ले और नहीं बिठा पाए तो ताने ,चाटे सभी कुछ मिल सकते हैं उपहार में और परिणाम वही ढाक के तीन पात  रोज मर-मर के जी या एक बार में मर .


ये स्थिति तो तथाकथित आज के आधुनिक समाज की है किन्तु भारत में अभी भी ऐसे समाज हैं जहाँ बाल विवाह की प्रथा है और जिसमे यदि दुर्भाग्यवश वह बाल विधवा हो जाये तो इसी समाज में बहिष्कृत की जिंदगी गुजारती है ,सती प्रथा तो लार्ड विलियम बैंटिक के प्रयासों से समाप्त हो गयी किन्तु स्थिति नारी की  उसके बाद भी कोई बेहतर हुई हो ,कहा नहीं जा सकता .आज भी किसी स्त्री के पति के मरने पर उसका जेठ स्वयं शादी शुदा बच्चों का बाप होने पर भी उसे ''रुपया '' दे घरवाली बनाकर रख सकता है .ऐसी स्थिति पर न तो उसकी पत्नी ऐतराज कर सकती है और न ही भारतीय कानून ,जो की एक जीवित पत्नी के रहते हुए दूसरी पत्नी को मान्यता नहीं देता किन्तु यह समाज मान्यता देता है ऐसे रिश्ते को .


इस समाज में कहीं  से लेकर कहीं तक नारी के लिए साँस लेने के काबिल फिजा नहीं है क्योंकि यदि कहीं भी कोई नारी सफलता की ओर बढती है या चरम पर पहुँचती है तो ये ही कहा जाता है कि सामाजिक मान्यताओं व् बाधाओं को दरकिनार कर उसने यह सफलता हासिल की .क्यूं समाज में आज भी सही सोच नहीं है ?क्यूं सही का साथ देने का माद्दा नहीं है ?सभी कहते हैं आज सोच बदल रही है कहाँ बदल रही है ?जरा वे एक ही उदाहरण सामने दे दे जिसमे समाज के सहयोग से किसी लड़की की जिंदगी बची हो या उसने समाज के सहयोग से सफलता हासिल की हो .ये समाज ही है जहाँ तेजाब कांड पीड़ित लड़कियों के घर जाने मात्र से ये अपने कदम मात्र इस डर से रोक लेता हो कि कहीं अपराधियों की नज़र में हम न आ जाएँ ,कहीं उनके अगले शिकार हम न बन जाएँ और इस बात पर समाज अपने कदम न रोकता हो न शर्म महसूस करता हो कि अपराधियों की गिरफ़्तारी पर थाने जाकर प्रदर्शन द्वारा उन्हें छुडवाने की कोशिश की जाये .


इस समाज का ऐसा ही रूप देखकर कन्या भ्रूण हत्या को जायज़ ही ठहराया जा सकता है क्योंकि -


''
क्या करेगी जन्म ले बेटी यहाँ साँस लेने के काबिल फिजा नहीं ।
इस अँधेरे को जो दूर कर सके ऐसा एक भी रोशन दिया नहीं ॥ 



इस पोस्ट की सत्यप्रतिलिपि यहाँ है। ये  पोस्ट शिखा कौशिक जी के द्वारा लिखित है। 

August 30, 2013

कौन करेगा गर्व भला भारत की ऐसी नारी पर !!

कौन करेगा गर्व भला भारत की ऐसी नारी पर !!


नारी  मुझको  रोना  आता  तेरी इस लाचारी पर ,
कौन करेगा गर्व भला भारत की ऐसी नारी पर !!


कोख में कन्या-भ्रूण है सुनकर मिलता आदेश मिटाने का ,
विद्रोह नहीं क्यूँ तू करती ?क्यूँ ममता तेरी जाती मर !!
कौन करेगा गर्व भला भारत की ऐसी नारी पर !!


दुल्हन बनकर जो आती है वो भी तो तेरी बेटी सम  ,
जब आग में झोंकी जाती है क्यूँ नहीं रोकती तू बढ़कर !!
कौन करेगा गर्व भला भारत की ऐसी नारी पर !!


बेटा-बेटी में भेद बड़ा तू भी तो करने लगती है ,
बेटी को डांट पिलाकर के बेटा लेती बाँहों में भर !!
कौन करेगा गर्व भला भारत की ऐसी नारी पर !!


कर सकती है तो इतना कर ये सोच बदल दकियानूसी ,
दोनों फूलों से है उपवन बेटा-बेटी दोनों सुन्दर !
कौन करेगा गर्व भला भारत की ऐसी नारी पर !!

इस पोस्ट की  सत्यप्रतिलिपि यहाँ है। ये  पोस्ट शिखा कौशिक जी के द्वारा लिखित है।

August 9, 2013

ईद की हार्दिक शुभकामनायें


मेरे प्यारे पाठक गणों को मेरी मतलब कार्तिकेय राज की तरफ  से ईद की तहेदिल से हार्दिक शुभकामनायें 

ईद की हार्दिक शुभकामनायें
गूगल से साभार
ईद की हार्दिक शुभकामनायें
गूगल से साभार

August 7, 2013

घर के गद्दारों को मिटाना बहुत जरुरी है



केवल किस्मत पर मत थोपो अपने पापों कोदूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के सांपो को....!!!!
अपने सिक्के खोटे हो तो जान पर बन आती हैऔर कश्मीर की घाटी खून से सन जाती है....!!!!
पकड़ गर्दन उनको खींचो बाहर अब उजाले मेंचाहे दुश्मन सात समुन्दर पार छुपा हो ताले में....!!!!
इन सब षडयंत्रों से पर्दा उठाना बहुत जरूरी हैपहले घर के गद्दारों को मिटाना बहुत जरूरी है....!!!!
. बेटी है कुदरत का उपहार. मत करो इसका तिस्कार .
. बेटी बचाओ, बेटी पढाओ. एक आदर्श माँ-बाप कहलाओ.
. जीने का भी उसका अधिकार . बस चाहिए उसको, आपका प्यार .
. आपकी लालसा है बेकार. बिन बेटी के चले संसार .
. ऐसा कोई काम नहीं, जो बेटियाँ कर पाई है . बेटियां तो आसमान से, तारे तोड़ की लाई है .
. दुल्हन अगर दुनिया में, दूल्हा कुंवारा रह जायेगा. क्या होगा इस दुनियां का, कौन मानव वंश चलाएगा...
घेर लेंगी जब मुझे चारों तरफ से गोलियांछोड़ कर चल देंगी जब मुझे दोस्तोंकी टोलियाँ
वतन उस वक्त भी मैं तेरे ही नगमें गाऊंगाआज़ाद ही जिन्दा रहा, आज़ाद ही मर जाऊंगा...!

July 27, 2013

हरा भरा गुलिस्तान अब बंजर देखा है ।



मैंने हवाओं का कुछ ऐसा असर देखा है...
 हरा भरा गुलिस्तान अब बंजरदेखा है... 
हम तो कहते गए भाई-भाई उनको...
 नजरों में उनकी मैंने बेपनाह जहर देखा है...
 न जाने क्यों नफरत सी हो गयी है मुझे उनसे...
 वतन से गद्दारी करतेमैंनेउन्हें जब से एक नजर देखा है... 
बेघर हो गए है मेरे सारे भाई खुद अपने घरों से... 
उनके घरों में अब दरिंदों का बसर मैंने देखा है..
 घर में घुसकर ही दिखा जाते है वो हैवानियत अपनी.. 
उन हैवानों का कुछ इस कदर कहर मैंने देखा है... 
रोता-बिलखता रह गया वो मासूम अपनी माँ के लिए... 
दंगों का कुछ ऐसा दर्दनाक मंजर मैंने देखा है... 
वक्त नहीं के किसी के भी पास अब औरों केलिए...
 उनका घर से ऑफिस तक का सफ़रमैंने देखा है.... 
इंसान अब बन गया है पत्थर की मूरत यारों... 
पत्थर का एक ऐसा ही आज मैंने शहर देखा है... 
फिर कांपेगी रूह उन लोगों की हमारे नाम से ही... 
उन हैवानो की आँखों में उनके कामों के अंजाम का डर मैंने देखा है...
 वक्त आएगा और चूमेगा TIRANGA फिर से इस नभ को... 
ख्वाब मैंने कुछ ऐसाशामों-सहर देखा है................. 


July 5, 2013

मेरी वापसी

 नमस्कार, सुप्रभात मेरे प्यारे पाठकगण आज कई महीनों बाद मेरी वापसी मेरे ब्लॉग पर हुयी है। मैं इतने दिनों अपनी  रीड़ में आई चोट के कारण बेड रेस्ट पर था , इसके इलाज और पढ़ाई  में व्यस्त था। इसीलिए मैं इतने दिनों तक ब्लॉग से दूर था,
इसलिए आपसे माफी चाहूँगा। पर अब मैं पूरी तरह से ठीक हो गया हूँ इसीलिए मैंने अब ब्लॉग पर फिर से वापसी कर ली है।



April 23, 2013

सेक्स की भूख या हैवानो का भोजन… ?


इस लेख का सत्य प्रतिलिपी यहाँ है।

ये देश और दिल्ली , दरिन्दगी की हद को पार करने का पर्याय बन चुका है.. एक से बढ़्कर एक दरिन्दा अपनी-अपनी हैवानियत का नजारा पेश कर रहा है.. और ये सरकार और कानून चुपचाप तमाशायी बन बैठा है.. आज पीएम साहब कह रहे है हम सदमे मे है..कल कानून कहेगा कि हम अन्धे है. ऐसे हैवानियत के लिए मेरे पास सजा का कोई प्रावधान नही है..और भेड़िये की तरह खाकी वर्दी पहने पुलिसिये उल्टे पीड़ितो को चुप कराकर, डरा-धमका कर, रिश्वत देकर, मामले को दबाने की कोशिश करके हैवानो को शह दे रही है ऐसे मे एक मासूम जनता कैसे रहे.. किस पर यकीं करे.. कानून पर, सरकार पर, पुलिस पर, समाज पर या अपने पड़ोसी पर.. ? हर जगह हैवान मौजूद है.. फिर कहाँ जाएँ .. ? कैसे रहे..? कौन करेगा इनकी हिफाजत..?

अभी अभी दिल्ली मे एक 5 साल की बच्ची के साथ जो घटना हुई.. क्या इसे आप सेक्स की भूख कहेंगे…? या इंसानियत के सर पर नाचता हुआ हैवानियत का बुखार बच्ची के पेट से मोमबत्ती और तेल की शीशी का निकलना इस बात को साबित करता है कि किसी कमजोर और मासूमो पर अपनी हैवानियत का गुबार कैसे निकाला जाता है.. हैवानियत की बात यही तक खत्म नही हो जाती, जब खाकी वर्दी पर इंसानियत के बड़े-बड़े तमगे लगाकर हैवानो से रक्षा करने के लिए तत्पर लोग भी अपनी इंसानियत भूल कर चन्द सिक्को के लालच में हैवानो की सरपरस्ती मे जुट जाते है..

अब जरा इस घटना के अंजाम के बारे मे सोचते हैकुछ का सस्पेंड होगा.. कुछ नेताए. कुछ दिन तक इस पर अपनी राजनीतिक भाषण देकर फायदा उठायेंगे….. जनता विरोध प्रदर्शन करेगी जाम लगायेगीफिर उस पर भी लाठी चार्ज होगा…. सरकार कोई नया कानून बनाने का दावा करेगी.. पीड़ितो को वोट के लालच मे बहुत से लोग मुआवजा देंगेदोषी को फाँसी लगाने का माँग होगाइस मे महीने बीत जायेंगे.. लोग अपनी अपनी रोजी-रोटी मे व्यस्त हो जायेंगे.. मामला ठण्ढ़े बस्ते मे चला जाएगाकुछ दिन बाद फिर कोई नई दरिन्दगी का नमूना पेश होगाफिर वही कहानी

समझ नही आता की एक इंसान क्यो भूलता जा रहा है अपनी इंसानियतक्यों दूसरे के बच्चो मे अपना बच्चा नही दिखाई देता है … ? क्यों दूसरे के माँ-बहन मे अपनी माँ-बहन नही झलकती है. ..? क्यों अपने आस-पड़ोस मे अपने घर में भी आपस मे प्रेम से दो शब्द बोलना भी दूभर हो गया है..? क्यों आपस की छोटी-छोटी बातो पर भी अपनी इज्जत जाती हुई दिखाई देती है.. ? क्यों सब अपने-अपने से ही मतलब रख रहे है… ? एक-दूसरे को क्यों समझना भूल गये है..?

कहाँ चले गये है वो धर्म के नाम पर तरह-तरह के ढ़ोंग करवाने वाले रंग-बिरंगे बापू जो टी0वी0 चैनलो पर सिर्फ अपने-अपने तिजारत के चक्कर मे लगे हुये रहते है.. पाप करने पर नर्क से डराने वाले धर्म के ढ़ोंगी बाबा सब कहाँ चले गये है.. ? मै उनसे पूछना चाहता हूँ कि क्या ये सब करने वाले जानते नही कि वो पाप कर रहे है.. ? क्या उन्हे नर्क जाने का डर नही..? पिछले 1-2 वर्षो मे जितने धर्म के भाषणी लोग बढ़े है उतनी ही इंसानियत कम होती दिखाई पड़ी है.. हैवानियत और दरिन्दगी हर गली-मुहल्ले मे दिखाई देने लगी है. ये तो इक्के-दुक्के वो घटनाएँ है जो मीडिया कर्मी की नजर पड़्ने पर अखबारों और न्युज चैनलो के माध्यम से लोग जान जाते है.. लेकिन हर रोज कही--कही इस तरह की घटनाएँ घटती है और कानून के इन नपुंसक रखवालो द्वारा चन्द पैसो के लालच मे दबा दी जाती है

इन घटनाओ को रोकने के लिए सरकार या कानून कुछ नही कर सकता .. क्योंकि जब तक इंसानों के अन्दर की इंसानियत वापस नही जाती कानून कुछ नही कर सकता

ऐसे दरिन्दो की सजा किसी अदालत मे होकर .. अदालत के बाहर हो और तुरंत हो, दोषी को पकड़ते ही उसे सड़क के बीचो-बीच हो, चौराहे पर होजिससे आने वाले दरिन्दो को दरिन्दगी की ऐसी सजा देखकर फिर से कोई ऐसा जुल्म करने की सोचे भी नहीक्योंकि फाँसी और जेल जैसे आम सजा तो लोग पाना ही चाहते हैक्योंकि इस जिन्दगी से और इस रोजी-रोटी से छुटकारा हर कोई पाना चाहता है….

अब सवाल ये है इस नपुंसक सरकार की नपुंसक कानून द्वारा अपने बहू-बेटियों को इन दरिन्दो से छुपाकर कहाँ रखे..? कैसे पाले… ?

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