समाज Headline Animator

समाज

September 2, 2013

समाज की बलि चढ़ती बेटियां













'साहब ! मैं तो अपनी बेटी को घर ले आता लेकिन यही सोचकर नहीं लाया कि समाज में मेरी हंसी उड़ेगी और उसका ही यह परिणाम हुआ कि आज मुझे बेटी की लाश को ले जाना पड़ रहा है .'' केवल राकेश ही नहीं बल्कि अधिकांश वे मामले दहेज़ हत्या के हैं उनमे यही स्थिति है दहेज़ के दानव पहले लड़की को प्रताड़ित करते हैं उसे अपने मायके से कुछ लाने को विवश करते हैं और ऐसे मे बहुत सी बार जब नाकामी की स्थिति आती है तब या तो लड़की की हत्या कर दी जाती है या वह स्वयं अपने को ससुराल व् मायके दोनों तरफ से बेसहारा समझ आत्महत्या कर लेती है.

सवाल ये है कि ऐसी स्थिति का सबसे बड़ा दोषी किसे ठहराया जाये ? ससुराल वालों को या मायके वालों को ? जहाँ एक तरफ मायके वालों को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा की चिंता होती है वहां ससुराल वालों को ऐसी चिंता क्यूं नहीं होती ?

इस पर यदि हम साफ तौर पर ध्यान दें तो यहाँ ऐसी स्थिति का एक मात्र दोषी हमारा समाज है जो ''जिसकी लाठी उसकी भैंस '' का ही अनुसरण करता है और चूंकि लड़की वाले की स्थिति कमजोर मानी जाती है तो उसे ही दोषी ठहराने से बाज नहीं आता और दहेज़ हत्या करने के बाद भी उन्ही दोषियों की चौखट पर किसी और लड़की का रिश्ता लेकर पहुँच जाता है क्योंकि लड़कियां तो ''सीधी गाय'' हैं चाहे जिस खूंटे से बांध दो .

मुहं सीकर ,खून के आंसू पीकर ससुराल वालों की इच्छा पूरी करती रहें तो ठीक ,यदि अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठा दें तो यह समाज ही उसे कुलता करार देने से बाज नहीं आता .पति यदि अपनी पत्नी से दोस्तों को शराब देने को कहे और वह दे दे तो घर में रह ले और नहीं दे तो घर से बाहर खड़ी करने में देर नहीं लगाता  .पति की माँ बहनों से सामंजस्य बैठाने की जिम्मेदारी पत्नी की ,बैठाले तो ठीक चैन की वंशी बजा ले और नहीं बिठा पाए तो ताने ,चाटे सभी कुछ मिल सकते हैं उपहार में और परिणाम वही ढाक के तीन पात  रोज मर-मर के जी या एक बार में मर .


ये स्थिति तो तथाकथित आज के आधुनिक समाज की है किन्तु भारत में अभी भी ऐसे समाज हैं जहाँ बाल विवाह की प्रथा है और जिसमे यदि दुर्भाग्यवश वह बाल विधवा हो जाये तो इसी समाज में बहिष्कृत की जिंदगी गुजारती है ,सती प्रथा तो लार्ड विलियम बैंटिक के प्रयासों से समाप्त हो गयी किन्तु स्थिति नारी की  उसके बाद भी कोई बेहतर हुई हो ,कहा नहीं जा सकता .आज भी किसी स्त्री के पति के मरने पर उसका जेठ स्वयं शादी शुदा बच्चों का बाप होने पर भी उसे ''रुपया '' दे घरवाली बनाकर रख सकता है .ऐसी स्थिति पर न तो उसकी पत्नी ऐतराज कर सकती है और न ही भारतीय कानून ,जो की एक जीवित पत्नी के रहते हुए दूसरी पत्नी को मान्यता नहीं देता किन्तु यह समाज मान्यता देता है ऐसे रिश्ते को .


इस समाज में कहीं  से लेकर कहीं तक नारी के लिए साँस लेने के काबिल फिजा नहीं है क्योंकि यदि कहीं भी कोई नारी सफलता की ओर बढती है या चरम पर पहुँचती है तो ये ही कहा जाता है कि सामाजिक मान्यताओं व् बाधाओं को दरकिनार कर उसने यह सफलता हासिल की .क्यूं समाज में आज भी सही सोच नहीं है ?क्यूं सही का साथ देने का माद्दा नहीं है ?सभी कहते हैं आज सोच बदल रही है कहाँ बदल रही है ?जरा वे एक ही उदाहरण सामने दे दे जिसमे समाज के सहयोग से किसी लड़की की जिंदगी बची हो या उसने समाज के सहयोग से सफलता हासिल की हो .ये समाज ही है जहाँ तेजाब कांड पीड़ित लड़कियों के घर जाने मात्र से ये अपने कदम मात्र इस डर से रोक लेता हो कि कहीं अपराधियों की नज़र में हम न आ जाएँ ,कहीं उनके अगले शिकार हम न बन जाएँ और इस बात पर समाज अपने कदम न रोकता हो न शर्म महसूस करता हो कि अपराधियों की गिरफ़्तारी पर थाने जाकर प्रदर्शन द्वारा उन्हें छुडवाने की कोशिश की जाये .


इस समाज का ऐसा ही रूप देखकर कन्या भ्रूण हत्या को जायज़ ही ठहराया जा सकता है क्योंकि -


''
क्या करेगी जन्म ले बेटी यहाँ साँस लेने के काबिल फिजा नहीं ।
इस अँधेरे को जो दूर कर सके ऐसा एक भी रोशन दिया नहीं ॥ 



इस पोस्ट की सत्यप्रतिलिपि यहाँ है। ये  पोस्ट शिखा कौशिक जी के द्वारा लिखित है। 

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (02-09-2013) को  प्रभु से गुज़ारिश : चर्चामंच 1356 में  "मयंक का कोना"   पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभ प्रभात, मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका शुक्रिया........

      Delete
  2. बहुत मार्मिक सत्य है !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभ प्रभात, मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका शुक्रिया........

      Delete
  3. बहुत मार्मिक सत्य है !!

    कृपया यहाँ भी पधारें और अपने विचार रखे
    , मैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका शुक्रिया.......

      Delete
  4. Replies
    1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका शुक्रिया.......

      Delete
  5. Replies
    1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका शुक्रिया.......

      Delete

टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद.................

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...