उपासना में वासना, मुख में है हरिनाम।
सत्संगों की आड़ में, करते गन्दे काम।।
जनता के धन-माल पर, ऐश करे परिवार।
सत्संगों की आड़ में, करते गन्दे काम।।
जनता के धन-माल पर, ऐश करे परिवार।
बाबाओं
के पास में, दौलत का
अम्बार।।
कुटिया
में एकान्त में, सिखलाते
हैं योग।
राम नाम
के नाम पर, फैलाते
हैं भोग।।
ललनाओँ
को जाल में, सन्त
फँसाता रोज।
ऐसा
कामी-अधम तो, धरती पर
है बोझ।।
हत्या और
बलात् के, किये
आपने काम।
गुरूकुलों
के नाम को, कर डाला
बदनाम।।
अपने ओछे
कर्म से, किया
कलंकित नाम।
शर्म-लाज
आयी नहीं, आशाओँ के
राम।।
2-
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धार लबादा सन्त का, करते पापाचार।
कश्ती को अब धर्म की, कौन करेगा पार।।
पहले भी थे धरा पर, थोड़े-बहुत असन्त।
अब बहुतायत में हुए, भोगी और कुसन्त।।
कामी. क्रोधी-लालची, करते कारोबार।
राम नाम की आड़ में, दौलत का व्यापार।।
उपवन के माली स्वयं, कली मसलते आज।
आशाएँ धूमिल हुईं, कुंठित हुआ समाज।।
आशाओं का हनन जब, करते आशाराम।