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समाज

April 23, 2013

सेक्स की भूख या हैवानो का भोजन… ?


इस लेख का सत्य प्रतिलिपी यहाँ है।

ये देश और दिल्ली , दरिन्दगी की हद को पार करने का पर्याय बन चुका है.. एक से बढ़्कर एक दरिन्दा अपनी-अपनी हैवानियत का नजारा पेश कर रहा है.. और ये सरकार और कानून चुपचाप तमाशायी बन बैठा है.. आज पीएम साहब कह रहे है हम सदमे मे है..कल कानून कहेगा कि हम अन्धे है. ऐसे हैवानियत के लिए मेरे पास सजा का कोई प्रावधान नही है..और भेड़िये की तरह खाकी वर्दी पहने पुलिसिये उल्टे पीड़ितो को चुप कराकर, डरा-धमका कर, रिश्वत देकर, मामले को दबाने की कोशिश करके हैवानो को शह दे रही है ऐसे मे एक मासूम जनता कैसे रहे.. किस पर यकीं करे.. कानून पर, सरकार पर, पुलिस पर, समाज पर या अपने पड़ोसी पर.. ? हर जगह हैवान मौजूद है.. फिर कहाँ जाएँ .. ? कैसे रहे..? कौन करेगा इनकी हिफाजत..?

अभी अभी दिल्ली मे एक 5 साल की बच्ची के साथ जो घटना हुई.. क्या इसे आप सेक्स की भूख कहेंगे…? या इंसानियत के सर पर नाचता हुआ हैवानियत का बुखार बच्ची के पेट से मोमबत्ती और तेल की शीशी का निकलना इस बात को साबित करता है कि किसी कमजोर और मासूमो पर अपनी हैवानियत का गुबार कैसे निकाला जाता है.. हैवानियत की बात यही तक खत्म नही हो जाती, जब खाकी वर्दी पर इंसानियत के बड़े-बड़े तमगे लगाकर हैवानो से रक्षा करने के लिए तत्पर लोग भी अपनी इंसानियत भूल कर चन्द सिक्को के लालच में हैवानो की सरपरस्ती मे जुट जाते है..

अब जरा इस घटना के अंजाम के बारे मे सोचते हैकुछ का सस्पेंड होगा.. कुछ नेताए. कुछ दिन तक इस पर अपनी राजनीतिक भाषण देकर फायदा उठायेंगे….. जनता विरोध प्रदर्शन करेगी जाम लगायेगीफिर उस पर भी लाठी चार्ज होगा…. सरकार कोई नया कानून बनाने का दावा करेगी.. पीड़ितो को वोट के लालच मे बहुत से लोग मुआवजा देंगेदोषी को फाँसी लगाने का माँग होगाइस मे महीने बीत जायेंगे.. लोग अपनी अपनी रोजी-रोटी मे व्यस्त हो जायेंगे.. मामला ठण्ढ़े बस्ते मे चला जाएगाकुछ दिन बाद फिर कोई नई दरिन्दगी का नमूना पेश होगाफिर वही कहानी

समझ नही आता की एक इंसान क्यो भूलता जा रहा है अपनी इंसानियतक्यों दूसरे के बच्चो मे अपना बच्चा नही दिखाई देता है … ? क्यों दूसरे के माँ-बहन मे अपनी माँ-बहन नही झलकती है. ..? क्यों अपने आस-पड़ोस मे अपने घर में भी आपस मे प्रेम से दो शब्द बोलना भी दूभर हो गया है..? क्यों आपस की छोटी-छोटी बातो पर भी अपनी इज्जत जाती हुई दिखाई देती है.. ? क्यों सब अपने-अपने से ही मतलब रख रहे है… ? एक-दूसरे को क्यों समझना भूल गये है..?

कहाँ चले गये है वो धर्म के नाम पर तरह-तरह के ढ़ोंग करवाने वाले रंग-बिरंगे बापू जो टी0वी0 चैनलो पर सिर्फ अपने-अपने तिजारत के चक्कर मे लगे हुये रहते है.. पाप करने पर नर्क से डराने वाले धर्म के ढ़ोंगी बाबा सब कहाँ चले गये है.. ? मै उनसे पूछना चाहता हूँ कि क्या ये सब करने वाले जानते नही कि वो पाप कर रहे है.. ? क्या उन्हे नर्क जाने का डर नही..? पिछले 1-2 वर्षो मे जितने धर्म के भाषणी लोग बढ़े है उतनी ही इंसानियत कम होती दिखाई पड़ी है.. हैवानियत और दरिन्दगी हर गली-मुहल्ले मे दिखाई देने लगी है. ये तो इक्के-दुक्के वो घटनाएँ है जो मीडिया कर्मी की नजर पड़्ने पर अखबारों और न्युज चैनलो के माध्यम से लोग जान जाते है.. लेकिन हर रोज कही--कही इस तरह की घटनाएँ घटती है और कानून के इन नपुंसक रखवालो द्वारा चन्द पैसो के लालच मे दबा दी जाती है

इन घटनाओ को रोकने के लिए सरकार या कानून कुछ नही कर सकता .. क्योंकि जब तक इंसानों के अन्दर की इंसानियत वापस नही जाती कानून कुछ नही कर सकता

ऐसे दरिन्दो की सजा किसी अदालत मे होकर .. अदालत के बाहर हो और तुरंत हो, दोषी को पकड़ते ही उसे सड़क के बीचो-बीच हो, चौराहे पर होजिससे आने वाले दरिन्दो को दरिन्दगी की ऐसी सजा देखकर फिर से कोई ऐसा जुल्म करने की सोचे भी नहीक्योंकि फाँसी और जेल जैसे आम सजा तो लोग पाना ही चाहते हैक्योंकि इस जिन्दगी से और इस रोजी-रोटी से छुटकारा हर कोई पाना चाहता है….

अब सवाल ये है इस नपुंसक सरकार की नपुंसक कानून द्वारा अपने बहू-बेटियों को इन दरिन्दो से छुपाकर कहाँ रखे..? कैसे पाले… ?

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