मैंने एक जगह इस लाइन को पढ़ा था जो मैं आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ
लाखो घर बर्बाद हो गए इस दहेज़ की होली में]
कितनी कन्यायें बेचारी बैठ न पाई डोली में]
कितनो ने अपने कन्या के हाथ पीले करने में]
कहाँ कहाँ मस्तक टेके आती शर्म बताने में]
अर्थी चढ़ी हजोरो कन्या बैठ न पाई डोली में]
लाखो घर बर्बाद हो गए इस दहेज़ की होली में ।।
सचमुच में आज इन्सान कितना नीचे गिर चुका जो अपने स्वार्थ की खातिर मासूम जिंदगियों से खिलवाड़ करने में थोडा भी नहीं हिचकिचाते हैं ।
सच है ... सटीक पंक्तियाँ
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