मौत की आग़ोश मे जब थक के सो जाती है माँ।
तब कही जा कर थोड़ा सुकूँ पाती है माँ।।
फिक्र में बच्चों की कुछ इस तरह घुल जाती है माँ।
नौजवां होते हुए बूढी नज़र आती है माँ।।
रूह के रिश्तोँ की यह गहराईयां तो देखिये।
चोट लगती है हमें और चिल्लाती है माँ।।
प्यार कहते है किसे और ममता क्या चिज़ है।
कोई उन बच्चो से पूछे जिनकी नहीं होती हैं माँ।।
कब जरूरत हो मेरी बच्चो को इतना सोच कर।
जागती रहती है आँखेँ और सो जाती है माँ।।
बाद मर जाने के फिर बेटे की खिदमत के लिए।
भेस बेटी का बदल कर घर में आ जाती है माँ।।
अपने पहलू मे लिटा कर रोज तोते की तरह।
एक, बारह, पाँच, चौदह, हमको रटवाती है माँ।।
चाहे लाख गमों का पहाड़ हो जन्दगी में मगर
कभी भी अपने कर्म मार्ग से भटकना मत बेटा ,
ऐसी बात अपने अनुभवों से रात दिन हमें समझाती है माँ...
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ReplyDeleteमुक्तक : मन दुःख से परिपूर्ण आज ही........
ReplyDeleteमन दुःख से परिपूर्ण आज ही मेरा साला ॥
और आज ही पर्व ये उजले रंगों वाला ॥
हर्षित होंगे शत्रु मुझे तक-तक पीड़ा में ,
सोचूँ ! ढँक रक्खूँ या पोत लूँ मुख पे काला ॥
http://shabdanagari.in/Website/Article/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%83%E0%A4%96%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%86%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A5%80