मैंने ये पोस्ट डॉ० रूपचन्द्र शास्त्री जी के ब्लॉग पर पढ़ी थी जो मैं आपके साथ शेयर कर रहा हॅू !
आँखों का सागर है रोता,
अब मनुहार कहाँ से लाऊँ?
सूख गया भावों का सोता,
अब वो प्यार कहाँ से लाऊँ?
पैरों से तुमने कुचले थे,
जब उपवन में सुमन खिले थे,
हाथों में है फूटा लोटा,
अब जलधार कहाँ से लाऊँ?
अब वो प्यार कहाँ से लाऊँ?
छल की गागर में छल ही छल,
रस्सी में केवल बल ही बल,
हमदर्दी का पहन मुखौटा,
जग को बातों से भरमाऊँ।
अब वो प्यार कहाँ से लाऊँ?
जो बोया वो काट रहे हैं,
तलुए उसके चाट रहे हैं,
अपना सिक्का निकला खोटा,
अब कैसे मैं हाथ मिलाऊँ?
अब वो प्यार कहाँ से लाऊँ?
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